Monday, February 11, 2019
Tuesday, November 15, 2016
सरहद के पार हाफ़िज़ तेरा
ए दिल है मुश्किल फिल्म से यह भजन / गीत / कविता / इबादत
------------------------------------------------------------
कहते हैं , कविताओं को समझना आसान नहीं , लेकिन कोशिश तो की जा सकती है । आखिर कोई कारण तो रहे होंगे जो यह कविता भारत मे नाज़िल हुई ।
मेरी रूह का परींदा फड़फडाये
लेकिन सुकून का जज़ीरा मिल न पाए
वे की करां.. वे की करां..
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , की रूह फड़फड़ा रही है , सुकून नहीं मिल रहा है , मैं क्या करूँ ? सुकून - अल्लाह की राह मे जिहाद है और वो हो नहीं पा रहा है । रूह बैचेन हो रही है ।
इक बार को तैजल्ली तो दिखा दे
झूठी सही मगर तसल्ली तो दिला दे
वे की करां.. वे की करां..
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , दिल्ली दिखा दे , दिल्ली फतह की झूठी तसल्ली ही दे दे । आखिर वो क्या करें ?
रान्झां दे वार बुल्लेया, सुने पुकार बुल्लेया, तू ही तो वार बुल्लेया
मुशिद मेरा, मुशिद मेरा
तेरा मुकाम कमली, सरहद के पार बुल्लेया, परवरदिगार बुल्लेया
हाफ़िज़ तेरा, मुर्शिद मेरा
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , पागल तेरे सच्चे आशिक सरहद के पार ही हैं । सरहद के पार ही हाफ़िज़ सईद है ।
मैं काबुल से लिपटी तितली की तरह मुहाजिर हूँ
एक पल को ठहरूं पल में उड़ जाऊं
वे मैं तां हूँ पगडंडी लाभादी ऐ जो राह जन्नत दी
तू मुड़े जहाँ मैं साथ मुड़जाऊं
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , मैं मुहाजिर हूँ, देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान चला गया था । अब केवल बम लगाने आता हूँ , और एक पल मे फट जाता हूँ ।
तेरे कारवां में शामिल होना चहुँ
कामिल तराश के मैं क़ाबिल होना चहुँ
वे की करां.. वे की करां..
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , किसी तरह तेरे गिरोह मे शामिल होना चाहता हूँ, बहुत काबलियत से लव जिहाद करना चाहता हूँ । आखिर हम करें क्या ?
जिस दिन से आशना से दो अजनबी हुवे हैं
तन्हाईओं के लम्हें सब मुल्तबी हुवे हैं
क्यूँ आज मैं मोहब्बत
फिर एक बार करना चाहूँ हाँ..
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , विभाजन के बाद हम अजनबी हो गए हैं । आज फिर काफिरों की औरतों से मोहब्बत करना चाहता हूँ, फिर से एक बार करना चाहता हूँ, एक बार के बाद तलाक दे दूँगा ।
.
ये दिल तो ढूंढता है इनकार के बहाने
लेकिन ये जिस्म कोई पाबंदियां ना माने
मिल के तुझे बगावत
ख़ुद से ही यार करना चाहूँ
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , बहुत हुये इंकार के बहाने, बस करो अब्बू जाग जाएँगे , या अल्लाह की देन अभी सोई नहीं है थोड़ा रुको , लेकिन जिस्म की भूख कोई पाबंदी नहीं मानती , मैं भूखा हूँ, तुम नहीं आई तो फरिश्ते तुम पर लानत भेजेंगे । इस भूख के चलते मैं चार निकाह कर सकता हूँ, कई तलाक दे सकता हूँ । मैं तुम काफिर का जिस्म हासिल कर खुद से बगावत करना चाहता हूँ ।
.
मुझमें अगन है बाकी आजमा ले
ले कर रही हूँ मैं ख़ुद को तेरे हवाले
वे रांझना.. वे रांझना..
...................... अर्थात कवि कहना चाहता है , इतनी बात के बाद काफिर हसीना ने समर्पण कर दिया है । काफिर हसीना कहती है , मैं आज भी जवान हूँ, आज भी गरम हूँ , मैं तुझको अपना बदन सौंपती हूँ - आ जाओ ।
.
.
पता नहीं - अर्थ का अनर्थ ना हो गया हो , लेकिन विद्वान मित्र अनुवाद मे सहायता करें हो सकता है , अर्थ कुछ दूसरा भी हो और मुझे समझ ना आया हो
तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो
कहते हैं , हर शेर आसमान से नाज़िल होता है , बिना अल्लाह के मर्ज़ी के मुकम्मल नहीं होता । मुनव्वर राणा जी ने अगर यह लिखा है तो काबिले तारीफ है , यह बच्चों के सिलेबस मे पढ़ाया जाना चाहिये । हर कोई गहराई तक जाके समझ नहीं सकता , शायर क्या कहना चाहता है , लेकिन फिर भी अमन और मोहब्बत का पैगाम स्पष्ट देखा जा सकता है । आइये कोशिश तो करें, सहज बुद्धि से समझनी की , लिखा तो आमजन की सहज बुद्धि के लिए ही है ।
.
ऐहले मौमीन 👌
.
अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा।।
सिर्फ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा।।
ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो।।
अहले इमां हो तो शैतान से डरते क्यों हो।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । मुंहजोरी के कुछ नहीं होगा , बातों मे कुछ नहीं रखा । जब तुम मर रहे हो तो शैतान से डरते क्यों हो । अगर "ईमान" पर दीन रखते हो तो शैतान से मत डरो । इस्लाम मे शैतान "बुत" के लिए कहा गया है । बुतपरस्तों को भी शैतान कहा जा सकता है । या सीधा संदेश है । काफिर से मत डरो ।
.
तुम भी महफूज़ कहाँ अपने ठिकाने पे हो।।
बादे अखलाक तुम्ही लोग निशाने पे हो।।
सारे ग़म सारे गिले शिकवे भुला के उठो।
दुश्मनी जो भी है आपस में भुला के उठो।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । तुम भी मरोगे, अखलाक के बाद तुम्हारा नंबर है । सारे फिरके एक हो जाओ । आपस मे इस्लाम के नाम पर एक हो जाओ और युद्ध के लिए तैयार हो ।
.
अब अगर एक न हो पाए तो मिट जाओगे।।
ख़ुश्क पत्त्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे।।
खुद को पहचानो की तुम लोग वफ़ा वाले हो।।
मुस्तफ़ा वाले हो मोमिन हो खुदा वाले हो।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । अगर तुम एक नहीं हो पाये तो मिट जाओगे, बिखर जाओगे । तुम ईमान पर वफा लाओ, तुम मोमिन हो खुदा वाले हो उनसे अलग हो ।
.
कुफ्र दम तोड़ दे टूटी हुई शमशीर के साथ।।
तुम निकल आओ अगर नारे तकबीर के साथ।।
अपने इस्लाम की तारीख उलट कर देखो ।
अपना गुज़रा हुआ हर दौर पलट कर देखो।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । इस्लाम को ना मानना कुफ्र है , जहन्नुम की आग है , अगर तुम एक बार नारा ए तदबीर का नारा लगा दो , तो बच जाओगे । इस्लाम की तारीख उलट कर देखो , गुजरा हुआ दौर याद करो । कैसे बाबर और औरंजेब ने काफिरों को काटा था । जनेऊ के वजन बराबर कत्लेआम किया था । उस पर फक्र करो । याद करो तुम क्या थे और क्या हो गये । गजवा ए हिन्द कायम करो ।
.
तुम पहाड़ों का जिगर चाक किया करते थे।।
तुम तो दरयाओं का रूख मोड़ दिया करते थे।।
तुमने खैबर को उखाड़ा था तुम्हे याद नहीं।।
तुमने बातिल को पिछाड़ा था तुम्हे याद नहीं।।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । तुम मे इतनी हिम्मत थी की जज़िया कर तक लगा दिया था। चमड़े की मोहरें चला दी थी । तुम पहाड़ की तरह दुश्मनों का सीना चाक करते थे , हलाक करते थे । तुम दरिया को मोड देते थे । आज भी 6 नदियों का पानी केवल पाकिस्तान ले रहा है । काफिर अपनी नदियों का पानी तक लेने का अधिकार नहीं रखते । तुमने दुश्मनों की कब्र खोदी थी । याद करो , याद करो
.
फिरते रहते थे शबो रोज़ बियाबानो में।।
ज़िन्दगी काट दिया करते थे मैदानों में..
रह के महलों में हर आयते हक़ भूल गए।।
ऐशो इशरत में पयंबर का सबक़ भूल गए।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । अरब की ज़िंदगी याद करो । कैसे भटकते रहते थे । ऊंट पर चलते रहते थे । मुगल बादशाहों के कारण आज तुमको महल मिल गये तो तुम इस्लाम भूल गये ? दीन को फैलाने का सबक भूल गए ? तुम किसलिए मुसलमान बने थे भूल गये ?
.
अमने आलम के अमीं ज़ुल्म की बदली छाई।।
ख़्वाब से जागो ये दादरी से अवाज़ आई।।
ठन्डे कमरे हंसी महलों से निकल कर आओ।।
फिर से तपते हु सहराओं में चल कर आओ।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । अमन खत्म हो रहा है । मुस्लिम मारे जा रहे हैं । दादरी मे चोरी करके गाय को काटने पर मार डाला गया । तुम अपना घर बार छोड़कर बाहर आओ , सपने से निकलो , फिर से आग लगा दो हिंदुस्तान मे
.
लेके इस्लाम के लश्कर की हर एक खुबी उठो।।
अपने सीने में लिए जज़्बाए ज़ुमी उठो।।
राहे हक़ में बढ़ो सामान सफ़र का बांधो।।
ताज़ ठोकर पे रखो सर पे अमामा बांधो।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । इस्लाम की सेना लेकर हर कोई उठो, सर पर कफन बांध कर मरने मारने तैयार हो जाओ ।
.
तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो।।।
फ़तह की एक नयी तारीख बना सकते हो।।।
खुद को पहचानों तो सब अब भी संवर सकता है।।
दुश्मने दीं का शीराज़ा बिखर सकता है।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । तुम चाहो तो पंचर बनाने के अलावा बम फोड़ के जमाने को हिला सकते हो, हर मुल्क हो जीत सकते हो । अपने आप को पहचानों , तुम आत्मघाती बम भी बन सकते हो । काफिर दुश्मन तो तबाह कर दो
.
हक़ परस्तों के फ़साने में कहीं मात नहीं।।।।।।।।
तुमसे टकराए "मुंनव़र" ज़माने की ये औक़ात नहीं।।
-------------------------------------------- शायर कहना चाहता है ।इस्लाम ने हारना नहीं सीखा , हिंदुस्तान पर तुम्हारा हक़ है , औए किसी की औकात नहीं जो तुमसे टकराए, तुमको रोक सके ।
.
✏____Munawwar Rana
अहिस्ता हुज़ूर - धीरे धीरे
ग़ज़ल समझना आसान नहीं / फिर भी कोशिश तो की जा सकती है
---------------------------------------------------------------------
.
सरकती जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- नकाब सरक रही है , नाजनीन बेपर्दा हो रही है धीरे धीरे
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- काले नकाब के गिरने के बाद ऐसा लगता है मानो काले काले भारी पहाड़ों के बीच सूरज निकल रहा हो - धीरे धीरे
.
जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
--------------------------------- "बड़ी" हो गई तो हमसे ही शर्माने लगी ? और खुद को छिपाने की कोशिश करने लगी ? जबकि बचपन से गोद मे खेली है ।
.
हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- शर्म जल्दी आ गई और जवानी धीरे धीरे
.
सवाल\-ए\-वसल पे उनको उदू का खौफ़ है इतना
--------------------------------- आज उनको एक मुलाक़ात करने पर बदनाम होने का डर सता रहा है ।
.
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- मुलाक़ात होगी लेकिन ज़्यादा तेज़ ना चलने की सलाह है । सब्र रखने को कहा जा रहा है ।
.
हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क है इतना
--------------------------------- अब यहाँ मोहब्बत के अंतर बताने की कोशिश है ।
.
इधर तो जल्दी\-जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- नायक को मुलाक़ात मे जल्दी मची है और नायिका कह रही है - धीरे धीरे
.
वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- नायक जाहिल होने के कारण वहशीपन पर उतर आया और नायिका कह रही है । ऐसी भी क्या जल्दी हुज़ूर - धीरे धीरे
.
अगर गज़लों को अर्थ समझकर सुनें तो ज़्यादा मज़ा आएगा ।
Thursday, December 6, 2012
स्वस्थ - सुंदर नहीं है - तो गोली मार दो
मैं बहुत से संग्रहालय मे गया हूँ , वहाँ रही तलवार, बंदूक देखकर अपने निरीह होने पर शर्मिंदा होता हूँ ---- बख्तरबंद , हेलमेट (और भी श्रंगार ) सब लोहे का , फिर भारी तलवार ---- इतने सब होने के बाद घोड़े की सवारी --- और युद्ध , मेरी कल्पना के परे है ---- मुझे महाराणा प्रताप के चेतक की कहानी याद आती है की कितना गहरा नाला उसने पार किया था ---- या जबलपुर की बंदर कूदनी .......... सही बात है कि समय के साथ सब
की याददाश्त, ऊंचाई , ताक़त सबमे फर्क आया है ......................... बहुत बातें
हो रही है कि विवाह मे जाती बंधन समाप्त हो जाने चाइए ......... कुछ लोगो ने क्रांतिकारी कदम भी उठाएँ हैं - फिल्म उद्योग से जुड़ी एक नायिका ने विदेशी क्रिकेट खिलाड़ी के साथ बिना शादी संतान उत्पन्न की --- वैज्ञानिक ही बता पाएंगे उसमे क्या खास है , लेकिन फिर भी बिना शर्त और बंधन के विवाह शुरू हो जाएँ तो क्या हर लड़की "बार्बी डॉल" और हर लड़का " खली " पैदा होने की कितनी संभावना है - और यदि यह सच हो तो देश हित मे ---- काले , मोटे , नाटे , बिकलांग , मूक - बधिर , चंदियल , बीमार, सबके प्रजनन के अधिकार छीन लेने चाहिए -------------------- यदि संतान 90% अंक अर्जित नहीं करती है और वह स्वस्थ - सुंदर नहीं है - तो गोली मार दो(बिना जाती भेदभाव के )
">
Subscribe to:
Posts (Atom)