Thursday, July 28, 2011

पुराने समय की बात है -


पुराने समय की बात है  -
महाविध्यालीन पढाई के दौरान कुछ आमदनी हेतु काम करने का विचार किया ....
ऐसा कोई काम जिस से आमदनी हो.... भयानक ख्याल था... मुझे कुछ आता भी ना था...
एक बार मेले में किसी को चावल पर कुछ लिखते देखा बात जाम गई ....
हां ..... कोशिश करूँ तो मैं भी कर सकता हूँ... 
तो श्रीमान मैंने भी शुरू किया.... निवाड़गंज से चावल के नमूने मांग लाया... और शुरू कोशिश
अंग्रेजी लिखते तो आसानी से आ गई...  लेकिन मज़ा नहीं आया ....
बहुत सारे लोग लिख लेते हैं.... इसमें क्या ख़ास है ???

तो मैंने संस्कृत में जैन नवकार मंत्र लिखा .... एक पद - एक चावल पर.....
फिर भी कोई हल्ला नहीं.......

अंततः मैने अरबी भाषा में पाक पंजतन लिखा (तस्वीर संलग्न है) ......
उसे सजाकर मीना बाज़ार ले गया... वह भाई - ज़ोरदार हल्ला .....
जैन साहब ने कमाल कर दिया... नायब चीज़ .... उम्दा हुनर..... वगैरह वगैरह
कुछ लोगो ने हाथ मिलाया ....कुछ  ने हाथ को चूमा ....

जब तमाशा ख़तम हुआ तो मैने कहा...मुझे तारीफ नहीं चाहिए - खरीददार   चाहिए.... तो सब भाग खड़े हुए....

बात आई कीमत की....... तो कुछ ने समझाया .... इस का व्यापार नहीं होता.... कीमत नहीं होती .... हदिया होती है.... सो मैने हदिया तय कर दी ७८६ रूपये मात्र .... फिर भी गुंजाईश नहीं - कोई मालदार नहीं....

अबकी बार निगाह "कलमा" पर गई.... मुझे विश्वास था - में लिख लूँगा ......
लेकिन पहले खरीददार तलाशा जाए.....

बड़े नाम चीन लोगो के पास गया .... बड़ी निराशा हुई......
फिर मौलाना साहब के पास ..... वो और बड़े वाले....
पहले तो ये.... कि में देख चुका हूँ.... संग्रहालय में है....
तुम नहीं लिख सकते....

मैं बोला - लिख दिया तो ?? कीमत बोलो......
जो संग्रहालय में है .... वो अमूल्य है..... पर उसकी नक़ल....
(हालाँकि नक़ल जैसी कोई बात नहीं, चावल के दाने पर फोटो कॉपी नहीं होती )
खरब - अरब - करोड़ - लाख - हज़ार - सैकड़ा ......... कोई मूल्य नहीं........
तो तय किया गया - आज के बाद --------------------------------------------------------------------------- हमेशा के लिए बंद
भगवान् भला करे.... शेष शुभ

1 comment:

  1. स्वप्निल जैन, आपका पेशा भी इसी रास्ते पर है। मुबारक, कम ही लोग शौक को जीवन भर चलाए रख पाते हैं।

    ReplyDelete