Thursday, December 6, 2012

स्वस्थ - सुंदर नहीं है - तो गोली मार दो

मैं बहुत से संग्रहालय मे गया हूँ , वहाँ रही तलवार, बंदूक देखकर अपने निरीह होने पर शर्मिंदा होता हूँ ---- बख्तरबंद , हेलमेट (और भी श्रंगार ) सब लोहे का , फिर भारी तलवार ---- इतने सब होने के बाद घोड़े की सवारी --- और युद्ध , मेरी कल्पना के परे है ---- मुझे महाराणा प्रताप के चेतक की कहानी याद आती है की कितना गहरा नाला उसने पार किया था ---- या जबलपुर की बंदर कूदनी .......... सही बात है कि समय के साथ सब की याददाश्त, ऊंचाई , ताक़त सबमे फर्क आया है ......................... बहुत बातें हो रही है कि विवाह मे जाती बंधन समाप्त हो जाने चाइए ......... कुछ लोगो ने क्रांतिकारी कदम भी उठाएँ हैं - फिल्म उद्योग से जुड़ी एक नायिका ने विदेशी क्रिकेट खिलाड़ी के साथ बिना शादी संतान उत्पन्न की --- वैज्ञानिक ही बता पाएंगे उसमे क्या खास है , लेकिन फिर भी बिना शर्त और बंधन के विवाह शुरू हो जाएँ तो क्या हर लड़की "बार्बी डॉल" और हर लड़का " खली " पैदा होने की कितनी संभावना है - और यदि यह सच हो तो देश हित मे ---- काले , मोटे , नाटे , बिकलांग , मूक - बधिर , चंदियल , बीमार, सबके प्रजनन के अधिकार छीन लेने चाहिए -------------------- यदि संतान 90% अंक अर्जित नहीं करती है और वह स्वस्थ - सुंदर नहीं है - तो गोली मार दो(बिना जाती भेदभाव के ) ">

विवाह संस्था बंद हो जाना चाहिए यदि लोग इतना कहते हैं तो .....

बहुत सारे चिंतकों और विचारकों के संदेश पिछले कुछ दिनो पढ़ने मिले कि - शादी - व्याह अब धर्म-जातियों के दायरे से बाहर होना चाहिए - इसके अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं या आने की उम्मीद है ---- सही बात है - कुछ विवाह मैंने - भारतीय युवक और विदेशी कन्या के देखे और कुछ विदेशी युवक के साथ भारतीय कन्या के ,(सुनते हैं कि विदेशों मे कुछ भारतीय लडकीयां खुश नहीं हैं) या ज़्यादातर भारतीय युवक तो विदेशों मे घर जमाई बन गए हैं - कुछ अपने माँ-बाप के अंतिम संस्कार मे भी नहीं आ सके --- और विदेशी ब हुए सास की आत्महत्या का कारण बनी है .... यह अपवाद स्वरूप हो सकता है ---------- सब सुखी रहे - रहना चाहिए ---- भारत मे भी होना चाहिए ---- जब कोई बाप कहे कि उसका समधी साइकिल के पीछे बांस की लंबी खप्पच्ची बांधकर वो जा रहा है , या हरे मोहल्ले मे उसकी हलाल की दुकान है ---- या बेटी बड़े गर्व से बताए - पापा, शहर के बाहर गंदे नाले के पास जो झुग्गी झोपड़ी है उसके आखिर की झोपड़ी मेरी है , और हमको बिजली का पैसा भी नहीं लगता - हालांकि कल "ये" बिजली का तार लटकाने की कोशिश कर रहे थे और चिपकते चिपकते बचे ---- या बहू हमको बताए - पापा, सूअर खाओ, गाय खाओ, अच्छा लगता है मैंने बचपन से खाया है, और यह दशहरा दिवाली सब ढोंग है - हमने कभी नहीं मनाया - आप भी न मनाओ - चर्च चलो , या शांति की तलाश मे किसी मठ मे चलो ------------- कभी कभी लगता है, इन सब के पीछे बहुत गंदी मानसिकता है औरत को प्रजनन की वस्तु समझने की , आने वाला कल किसी भैंस के बाड़े सा न हो जहां बहुत सारी भैंस बंधी होती हैं और एक "पाड़े" वाला आता है, और एक बार की निर्धारित कीमत लेता हैं ..... या हमे इंतज़ार है गमले मे उगाये हुए पीपल के व्रक्ष का फिर भी मैं कहता हूँ आखिर इसमे बुरा क्या है ?? विवाह संस्था बंद हो जाना चाहिए यदि लोग इतना कहते हैं तो .....