Tuesday, November 15, 2016

तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो

कहते हैं , हर शेर आसमान से नाज़िल होता है , बिना अल्लाह के मर्ज़ी के मुकम्मल नहीं होता । मुनव्वर राणा जी ने अगर यह लिखा है तो काबिले तारीफ है , यह बच्चों के सिलेबस मे पढ़ाया जाना चाहिये । हर कोई गहराई तक जाके समझ नहीं सकता , शायर क्या कहना चाहता है , लेकिन फिर भी अमन और मोहब्बत का पैगाम स्पष्ट देखा जा सकता है । आइये कोशिश तो करें, सहज बुद्धि से समझनी की , लिखा तो आमजन की सहज बुद्धि के लिए ही है । . ऐहले मौमीन 👌 . अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा।। सिर्फ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा।। ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो।। अहले इमां हो तो शैतान से डरते क्यों हो।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । मुंहजोरी के कुछ नहीं होगा , बातों मे कुछ नहीं रखा । जब तुम मर रहे हो तो शैतान से डरते क्यों हो । अगर "ईमान" पर दीन रखते हो तो शैतान से मत डरो । इस्लाम मे शैतान "बुत" के लिए कहा गया है । बुतपरस्तों को भी शैतान कहा जा सकता है । या सीधा संदेश है । काफिर से मत डरो । . तुम भी महफूज़ कहाँ अपने ठिकाने पे हो।। बादे अखलाक तुम्ही लोग निशाने पे हो।। सारे ग़म सारे गिले शिकवे भुला के उठो। दुश्मनी जो भी है आपस में भुला के उठो।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । तुम भी मरोगे, अखलाक के बाद तुम्हारा नंबर है । सारे फिरके एक हो जाओ । आपस मे इस्लाम के नाम पर एक हो जाओ और युद्ध के लिए तैयार हो । . अब अगर एक न हो पाए तो मिट जाओगे।। ख़ुश्क पत्त्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे।। खुद को पहचानो की तुम लोग वफ़ा वाले हो।। मुस्तफ़ा वाले हो मोमिन हो खुदा वाले हो।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । अगर तुम एक नहीं हो पाये तो मिट जाओगे, बिखर जाओगे । तुम ईमान पर वफा लाओ, तुम मोमिन हो खुदा वाले हो उनसे अलग हो । . कुफ्र दम तोड़ दे टूटी हुई शमशीर के साथ।। तुम निकल आओ अगर नारे तकबीर के साथ।। अपने इस्लाम की तारीख उलट कर देखो । अपना गुज़रा हुआ हर दौर पलट कर देखो।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । इस्लाम को ना मानना कुफ्र है , जहन्नुम की आग है , अगर तुम एक बार नारा ए तदबीर का नारा लगा दो , तो बच जाओगे । इस्लाम की तारीख उलट कर देखो , गुजरा हुआ दौर याद करो । कैसे बाबर और औरंजेब ने काफिरों को काटा था । जनेऊ के वजन बराबर कत्लेआम किया था । उस पर फक्र करो । याद करो तुम क्या थे और क्या हो गये । गजवा ए हिन्द कायम करो । . तुम पहाड़ों का जिगर चाक किया करते थे।। तुम तो दरयाओं का रूख मोड़ दिया करते थे।। तुमने खैबर को उखाड़ा था तुम्हे याद नहीं।। तुमने बातिल को पिछाड़ा था तुम्हे याद नहीं।।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । तुम मे इतनी हिम्मत थी की जज़िया कर तक लगा दिया था। चमड़े की मोहरें चला दी थी । तुम पहाड़ की तरह दुश्मनों का सीना चाक करते थे , हलाक करते थे । तुम दरिया को मोड देते थे । आज भी 6 नदियों का पानी केवल पाकिस्तान ले रहा है । काफिर अपनी नदियों का पानी तक लेने का अधिकार नहीं रखते । तुमने दुश्मनों की कब्र खोदी थी । याद करो , याद करो . फिरते रहते थे शबो रोज़ बियाबानो में।। ज़िन्दगी काट दिया करते थे मैदानों में.. रह के महलों में हर आयते हक़ भूल गए।। ऐशो इशरत में पयंबर का सबक़ भूल गए।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । अरब की ज़िंदगी याद करो । कैसे भटकते रहते थे । ऊंट पर चलते रहते थे । मुगल बादशाहों के कारण आज तुमको महल मिल गये तो तुम इस्लाम भूल गये ? दीन को फैलाने का सबक भूल गए ? तुम किसलिए मुसलमान बने थे भूल गये ? . अमने आलम के अमीं ज़ुल्म की बदली छाई।। ख़्वाब से जागो ये दादरी से अवाज़ आई।। ठन्डे कमरे हंसी महलों से निकल कर आओ।। फिर से तपते हु सहराओं में चल कर आओ।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । अमन खत्म हो रहा है । मुस्लिम मारे जा रहे हैं । दादरी मे चोरी करके गाय को काटने पर मार डाला गया । तुम अपना घर बार छोड़कर बाहर आओ , सपने से निकलो , फिर से आग लगा दो हिंदुस्तान मे . लेके इस्लाम के लश्कर की हर एक खुबी उठो।। अपने सीने में लिए जज़्बाए ज़ुमी उठो।। राहे हक़ में बढ़ो सामान सफ़र का बांधो।। ताज़ ठोकर पे रखो सर पे अमामा बांधो।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । इस्लाम की सेना लेकर हर कोई उठो, सर पर कफन बांध कर मरने मारने तैयार हो जाओ । . तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो।।। फ़तह की एक नयी तारीख बना सकते हो।।। खुद को पहचानों तो सब अब भी संवर सकता है।। दुश्मने दीं का शीराज़ा बिखर सकता है।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है । तुम चाहो तो पंचर बनाने के अलावा बम फोड़ के जमाने को हिला सकते हो, हर मुल्क हो जीत सकते हो । अपने आप को पहचानों , तुम आत्मघाती बम भी बन सकते हो । काफिर दुश्मन तो तबाह कर दो . हक़ परस्तों के फ़साने में कहीं मात नहीं।।।।।।।। तुमसे टकराए "मुंनव़र" ज़माने की ये औक़ात नहीं।। -------------------------------------------- शायर कहना चाहता है ।इस्लाम ने हारना नहीं सीखा , हिंदुस्तान पर तुम्हारा हक़ है , औए किसी की औकात नहीं जो तुमसे टकराए, तुमको रोक सके । . ✏____Munawwar Rana

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