Tuesday, November 15, 2016
अहिस्ता हुज़ूर - धीरे धीरे
ग़ज़ल समझना आसान नहीं / फिर भी कोशिश तो की जा सकती है
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सरकती जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- नकाब सरक रही है , नाजनीन बेपर्दा हो रही है धीरे धीरे
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- काले नकाब के गिरने के बाद ऐसा लगता है मानो काले काले भारी पहाड़ों के बीच सूरज निकल रहा हो - धीरे धीरे
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जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
--------------------------------- "बड़ी" हो गई तो हमसे ही शर्माने लगी ? और खुद को छिपाने की कोशिश करने लगी ? जबकि बचपन से गोद मे खेली है ।
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हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- शर्म जल्दी आ गई और जवानी धीरे धीरे
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सवाल\-ए\-वसल पे उनको उदू का खौफ़ है इतना
--------------------------------- आज उनको एक मुलाक़ात करने पर बदनाम होने का डर सता रहा है ।
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दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- मुलाक़ात होगी लेकिन ज़्यादा तेज़ ना चलने की सलाह है । सब्र रखने को कहा जा रहा है ।
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हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क है इतना
--------------------------------- अब यहाँ मोहब्बत के अंतर बताने की कोशिश है ।
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इधर तो जल्दी\-जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- नायक को मुलाक़ात मे जल्दी मची है और नायिका कह रही है - धीरे धीरे
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वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता
--------------------------------- नायक जाहिल होने के कारण वहशीपन पर उतर आया और नायिका कह रही है । ऐसी भी क्या जल्दी हुज़ूर - धीरे धीरे
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अगर गज़लों को अर्थ समझकर सुनें तो ज़्यादा मज़ा आएगा ।
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